(नागपत्री एक रहस्य-27)
दादा जी सब कहते हैं कि मेरी आंखें बड़ी ही लुभावनी है, और थोड़ी-थोड़ी नीली होने के कारण मैं एक खूबसूरत नागिन का बच्चा लगती हुं , तो क्या भला आपको कोई नाग कहेगा??
क्या इंसान कभी नाग हो सकता है?? या नाग कभी इंसान ??बड़ी मासूमियत से लक्षणा ने अपने दादा जी से सवाल किया और जवाब सुनने की इच्छा से उनके चेहरे को वह एकटक देखने लगी कि शायद कोई सार्थक जवाब मिले।
बच्ची की मासूम बातें सुनकर दादाजी ने कहा, लगता तो मेरा बच्चा ऐसा ही है जरा दिखाना, कहकर उन्होंने लक्षणा के माथे पर हाथ घुमाया ,और चुम्बन के साथ उसे अपनी गोद में बैठाकर प्यार से समझाने लगे।
वे कहने लगे कि नीली आंखें तो तुम्हारी इतनी सुंदर है, अब लोग अगर डरते हैं तो डरे, भला इतना मासूम चेहरा भी देख कर कोई डरता है।
यह सुनते ही लक्षणा मुस्कुराकर दादाजी की ओर देखने लगी और कहने लगी, हां देखिए तो इस बच्ची का मासूम चेहरा और लोग ऐसा कहते हैं, बताइए तो जरा....
तब दादाजी ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, और रही बात नाग और मानव की तो सृष्टि में सभी जीवात्मा एक ही है, सिर्फ शरीर की भिन्नता हो जाने से उसे ईश्वर से विलग नहीं किया जा सकता।
लेकिन रही बात तुम्हारे सवाल की तो अवश्य ही मानव कठोर साधना के पश्चात किसी रूप को धारण कर पाने में सक्षम है, लेकिन उसके लिए इतनी साधना करने के पश्चात रूप परिवर्तन उस जीवात्मा के लिए कोई मायने नहीं रखता, ठीक ऐसे ही सर्वोत्तम नाग प्रजाति या यूं कहे कि इच्छाधारी का बल प्राप्त होने के पश्चात कोई भी नाग किसी भी रूप को ले पाने में सक्षम है।
कोई भी जीव जंतु या मानव लेकिन यह वह सिर्फ किसी विशेष उद्देश्य या सुरक्षा की दृष्टि से देखते हैं, फिर यह कह देना कोई मजाक की बात नहीं, लोग जो कहते हैं कहने दो।
मतलब दादाजी आख़िर नाग प्रजाति का जन्म हुआ कैसे?? और उनका मानव प्रजाति से क्या रिश्ता है ??और जो आप हर बात जिन नाग देवी का वर्णन करते हो, वास्तव में वह कौन है??
छोटे बच्चे के मुंह से ऐसी बातें सुनकर दादा जी प्रसन्न हुए, और उन्होंने आज पूरा दिन अपनी पोती के साथ बिताने का विचार किया, या सरल शब्दों में यह कह सकते हैं कि लक्षणा ने फिर एक बार चालाकी से रोक ही लिया,
वास्तव में नागकन्या और नाग जाति के जन्म का इतिहास भिन्न-भिन्न है, यदि नाग प्रजाति की बात कही जाए तो..
कथा के अनुसार ऋषि कश्यप और दक्ष पुत्री कद्रु से नागों का जन्म हुआ है, ऐसा कहा जाता है कि कद्रू और कश्यप से एक हजार नाग प्रजातियों का जन्म हुआ था, इनमें से आठ नाग प्रमुख थे।
वासुकि, तक्षक, कुलक, कर्कोटक, पद्म, शंख, चूड़, महापद्म और धनंजय।
नागों की ये आठ मूल प्रजातियां थीं, इन्हीं से कई उपप्रजातियां बनीं।
नागों के अष्टकुल...
कश्यप ऋषि की पत्नी कद्रू से उन्हें आठ पुत्र मिले, जिनके नाम क्रमश: इस प्रकार हैं-
1.अनंत (शेष),
2.वासुकि,
3.तक्षक,
4.कर्कोटक,
5.पद्म,
6.महापद्म,
7.शंख और
8.कुलिक।
इन्हें ही नागों का प्रमुख अष्टकुल कहा जाता है, कुछ पुराणों के अनुसार नागों के अष्टकुल क्रमश: इस प्रकार हैं:-
वासुकी, तक्षक, कुलक, कर्कोटक, पद्म, शंख, चूड़, महापद्म और धनंजय।
कुछ पुराणों अनुसार नागों के प्रमुख पांच कुल थे- अनंत, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक और पिंगला।
शेषनाग ने भगवान विष्णु तो उनके छोटे भाई वासुकी ने शिवजी का सेवक बनना स्वीकार किया था।
उल्लेखनीय है कि नाग और सर्प में फर्क है, सभी नाग कद्रू के पुत्र थे, जबकि सर्प क्रोधवशा के कश्यप की क्रोधवशा नामक रानी ने सांप या सर्प, बिच्छु आदि विषैले जन्तु पैदा किए।
आठ कुल का ही क्रमश: विस्तार हुआ हैं, जिनमें निम्न नागवंशी रहे हैं...
नल, कवर्धा, फणि-नाग, भोगिन, सदाचंद्र, धनधर्मा, भूतनंदि, शिशुनंदि या यशनंदि तनक, तुश्त, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अहि, मणिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना, गुलिका, सरकोटा इत्यादी नाम के नाग वंश हैं।
अग्निपुराण में अस्सी प्रकार के नाग कुलों का वर्णन है, जिसमें वासुकी, तक्षक, पद्म, महापद्म प्रसिद्ध हैं।
नागों का पृथक नागलोक पुराणों में बताया गया है, अनादिकाल से ही नागों का अस्तित्व देवी-देवताओं के साथ वर्णित है,
जैन, बौद्ध देवताओं के सिर पर भी शेष छत्र होता है।
अथर्ववेद में कुछ नागों के नामों का उल्लेख मिलता है।
ये नाग हैं श्वित्र, स्वज, पृदाक, कल्माष, ग्रीव और तिरिचराजी नागों में चित कोबरा (पृश्चि), काला फणियर (करैत), घास के रंग का (उपतृण्य), पीला (ब्रम), असिता रंगरहित (अलीक), दासी, दुहित, असति, तगात, अमोक और तवस्तु आदि।
नागकन्या.....
कुंती पुत्र अर्जुन ने पाताल लोक की एक नागकन्या से विवाह किया था, जिसका नाम उलूपी था, वह विधवा थी, अर्जुन से विवाह करने के पहले उलूपी का विवाह एक बाग से हुआ था, जिसको गरूड़ ने खा लिया था, अर्जुन और नागकन्या उलूपी के पुत्र थे अरावन, भीम के पुत्र घटोत्कच का विवाह भी एक नागकन्या से ही हुआ था, जिसका नाम अहिलवती था और जिसका पुत्र वीर योद्धा बर्बरीक था।
नागलोक...
सात पाताल है- 1. अतल, 2. वितल, 3. सुतल, 4. रसातल, 5. तलातल, 6. महातल और 7. पाताल।
इनमें से महातल में कश्यप की पत्नी कद्रू से उत्पन्न हुए अनेक सिरों वाले सर्पों का 'क्रोधवश' नामक एक समुदाय रहता है, उनमें कहुक, तक्षक, कालिया और सुषेण आदि प्रधान नाग रहते हैं, उनके बड़े-बड़े फन हैं, वासुकी नाग भी पाताल लोक के नागलोक में रहता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार पाताल लोक में कहीं एक जगह नागलोक था, जहां मानव आकृति में नाग रहते थे, कहते हैं कि सात तरह के पाताल में से एक महातल में ही नागलोक बसा था, जहां कश्यप की पत्नी कद्रू और क्रोधवशा से उत्पन्न हुए अनेक सिरों वाले नाग और सर्पों का एक समुदाय रहता था, उनमें कहुक, तक्षक, कालिया और सुषेण आदि प्रधान नाग थे।
नाक कुल की भूमि....
यह सभी नाग को पूजने वाले नागकुल थे, इसीलिए उन्होंने नागों की प्रजातियों पर अपने कुल का नाम रखा, जैसे तक्षक नाग के नाम पर एक व्यक्ति जिसने अपना 'तक्षक' कुल चलाया, उक्त व्यक्ति का नाम भी तक्षक था, जिसने राजा परीक्षित की हत्या कर दी थी, बाद में परीक्षित के पुत्र जन्मजेय ने तक्षक से बदला लिया था।
नाग और नाग जाति...
जिस तरह सूर्यवंशी, चंद्रवंशी और अग्निवंशी माने गए हैं, उसी तरह नागवंशियों की भी प्राचीन परंपरा रही है, महाभारत काल में पूरे भारत वर्ष में नागा जातियों के समूह फैले हुए थे, ये लोग सर्प पूजक होने के कारण नागवंशी कहलाए।
नाग वंशावलियों में 'शेष नाग' को नागों का प्रथम राजा माना जाता है, शेष नाग को ही 'अनंत' नाम से भी जाना जाता है, इसी तरह आगे चलकर शेष के बाद वासुकी हुए फिर तक्षक और पिंगलावासुकी का कैलाश पर्वत के पास ही राज्य था और मान्यता है कि तक्षक ने ही तक्षकशिला (तक्षशिला) बसाकर अपने नाम से 'तक्षक' कुल चलाया था। उक्त तीनों की गाथाएं पुराणों में पाई जाती हैं।
हम माटी को, पक्षियों को एवं अन्य जीव जंतुओं को बड़ी ही श्रद्धा से पूजते हैं, कण-कण में भगवान हैं, के विचार को हम अपने हृदय में धारण करते हैं, इसी तरह एक जीव है नाग,
हम नागों की भी पूजा करते हैं, उनके लिए सम्मान का भाव रखते हैं, हम नाग पंचमी मनाते हैं, पालनकर्ता भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर विश्राम करते हैं, वहीं महादेव के गले के हार नागराज वासुकी हैं।
महर्षि कश्यप की पत्नी कद्रू और विनता
महर्षि कश्यप जिनकी अनेक पत्नियां थीं, उनमें से दो थीं विनता और कद्रू, दोनों रूपवती एवं गुणवती थीं ,और दोनों के बीच एक दूसरे के लिए प्रतिस्पर्धा का भाव था, इसी प्रतिस्पर्धा में उन्होंने महर्षि कश्यप की खूब सेवा की जिससे प्रसन्न होकर महर्षि कश्यप ने वर मांगने को कहां, जिस पर कद्रू ने अत्यंत बलशाली एक सहस्त्र पुत्रों का वरदान मांगा।
वहीं विनता ने वरदान में केवल दो पुत्र ही मांगे, परंतु इतने शक्तिशाली और प्रभावी कि उनके व्यक्तित्व से कद्रू के पुत्र तक विचलित हो जाएं, महर्षि कश्यप ने दोनों को तथास्तु! कहा...
परिणामस्वरूप कद्रू ने एक अंडा दिया और विनता ने दो अंडे उत्पन्न किए, तय समय के बाद कद्रू के अंडे के फूटने से एक सहस्त्र नाग पुत्र निकले जिसके बाद नाग लोक का सृजन हुआ, परंतु ये क्या-विनता के अंडे फूटने में तो और अधिक समय लग रहा था, सालों बीत गए लेकिन विनता के अंडे फूटे ही नहीं तो अधीरता में विनता ने अपने एक अंडे को फोड़ दिया जिसमें से उनका एक पुत्र निकला जो पूर्ण रूप से विकसित नहीं था,
एक ऐसा बलशाली पुत्र जिसके कमर के नीचे का भाग पूरी तरह से विकसित ही नहीं था, उस बालक ने जो कि अरुण देव हैं, उन्होंने अपने माता से कहा कि आपने ये क्या किया, लेकिन जो मेरा छोटा भाई है उसे पूर्ण विकसित होने दें। इतना कहकर अरुण देव सूर्यदेव के पास चले गए और उनके सारथी बन गए।
यह कहते हुए दादाजी ने एक भावपूर्ण अभिव्यक्ति के साथ नागों की उत्पत्ति और उनका वर्णन लक्षणा को बताया, जिसे लक्षणा बड़े ध्यान पूर्वक सुन रही थी, जैसे वह पूर्व से ही सब कुछ जानती हो।
क्रमशः....
Milind salve
03-Aug-2023 02:53 AM
Nice
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